जागो सरकार! एक बेटी का वस्त्रहरण हो रहा है”
गूंगे बहरे बन बैठे ये हमारे हुक्मरान,
लाज लुट रही बेटी की,
हो रहा चीरहरण और अपमान।
किससे उम्मीद लगायें और किससे करें दिल का दर्द बयां,
जो गुनाह और गुनहगारों पर मौन हैं,
उन्हें कभी माफ़ मत करना भगवान,
उन्हें कभी माफ़ मत करना भगवान।
आज शर्म आ रही है ये सोचकर कि हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहां नारी को हराने के लिए उसे नीचा दिखाने के लिए उसका वस्त्रहरण किया जा रहा है उसके साथ अभद्र व्यवहार किया जा रहा है।
ये जो महिलाओं की साड़ी खींच कर खुद को मर्द बता रहे हैं इन्हें इस बात को समझने की जरूरत है कि केवल मूंछ उगाने से कोई मर्द नहीं बन जाता,
क्योंकि मूंछें बिल्ली की भी होती हैं और वो एक जानवर है।
कितनी शर्म की बात है महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए कुछ पुरुष इतने नीचे गिर गऐ हैं कि उनकी अस्मिता को छलनी करने पर उतारुं हो रहे हैं।
यहां सोचने जैसी बात ये है कि क्या इन लोगों के घरों में मां,बहन या बेटी नहीं और क्या अधिकार है इन्हें किसी महिला के साथ ऐसा व्यवहार करने का।
हमें भूलना नहीं चाहिए हम उस देश के नागरिक हैं जहां बेटी को लक्ष्मी का रुप और मातृभूमि को माता कहा जाता है।
आज मेरा सवाल हमारे देश के हर व्यक्ति से है कि क्या आज के पुरुष की सोच और उसका व्यक्तित्व इतना गिर गया है जो किसी महिला को हराने के लिए कौरव बन उसका वस्त्रहरण करने को उतारु हो जाये।
_ अंकिता जैन अवनी
लेखिका/कवयित्री
अशोकनगर मप्र
अति उत्तम लिखा आपने अंकिता जैन जी। आपने अपनी लेखनी से जोरदार और तर्कपूर्ण सवाल किये हैं हुक्मरानों , समाज और पुरुषत्व के अहंकार में डूबे नागरिकों से।